मुज़फ्फरनगर। भारतीय अति पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहन प्रजापति का जीवन हमेशा संघर्ष से भरा रहा बचपन से ही चुनौतियों का मुकाबला करना उनको पसंद रहा है उनका जन्म मुजफ्फरनगर के गांव जोली में एक बहुत ही गरीब कुम्हार परिवार में हुआ व 12 साल की उम्र से ही समाज सेवा से जुड़े गए थे गांव व अन्य गांव के लोगों के सुख-दुख में रहना शुरू कर दिया था जिससे क्षेत्र वासी उन्हें काफी पसंद करने लगे थे बचपन में ही उन्होंने गांव व क्षेत्र के विकास व जनहित के कई बड़े मुद्दे उठाए जिसकी वजह से ज्यादातर लोगों की पसंद बने वहीं उनकी बढ़ती लोकप्रियता से कुछ लोगों की आंखों का कांटा भी बने जिनकी वजह से बचपन में ही कई बार उनके विरोधियों द्वारा उन पर कई बार जानलेवा हमले किए गए लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी उसके बाद 17 साल की उम्र में गांव के ही एक बड़े राजनीतिक घराना जिसमें पूर्व प्रमुख व विधायक तक रहे हैं उस घराने के इशारे पर उनका अपहरण की कोशिश भी की गई लेकिन जंगल में ही उनमें और अपहरणकर्ता में आपस में खींचतान में झगड़ा हो गया और उन्होंने अपरण करता का सरिया छीन कर उस पर हमला कर उससे रस्सी वे तमंचा छीन कर भाग आए थे फिर पुलिस को सूचना दी जिस पर पुलिस व गांव वालों ने उनकी सराहना भी की थी फिर गांव में पंचायत के बाद अपहरणकर्ताओं को उन्होंने माफी दे दी थी उन्होंने बताया है कि उन्होंने मात्र 18 वर्ष की उम्र में जो गांव में रोड पर शिव मंदिर था ठीक उसके सामने विशेष समुदाय के लोगों ने मांस की दुकान खोल ली थी जिसको हटवाने के लिए काफी लोगों ने प्रयास किया लेकिन नाकाम रहे जिसकी वजह से गांव में तनाव हो रहा था और फिर उन्होंने मात्र 18 साल की उम्र में इस मामले को उठाया और एसडीएम जानसठ के कार्यालय पर जाकर धरना दिया जिसकी वजह से तत्कालीन एसडीएम व सीओ महेंद्र सिंह फोर्स के साथ गांव पहुंचे और तुरंत इस दुकान को हटवाया गांव से फोर्स जाने जाते ही विशेष समुदाय के लोगों ने उपद्रवियों ने सैकड़ों लोगों की संख्या में इकट्ठा होकर उन्हें घेर लिया इस्तेफाक से गांव के ही एक बुजुर्ग विक्रम सिंह वहां से गुजर रहे थे। उन्होंने इतना कहा कि सैकड़ों लोगों ने अकेले को घेर रखा है बस उस बुजुर्ग इतना कहते ही उनमें इतनी हिम्मत आई कि मोहन प्रजापति की ललकार मात्र से हु उपद्रवियों के हौसले पस्त हो गए थे उसके बाद में व गांव क्षेत्र में और भी निखर गए थे यहां से शुरुआत हुई समाज सेवा के साथ-साथ राजनीतिक पारी की उसके बाद उन्होंने 19 साल की उम्र रही होगी जब उन्हें पता चला कि उनके जोली रोड पर जितने भी गांव पड़ते हैं और गांव से शहर में पढ़ाई करने के लिए आने-जाने वाले छात्र-छात्राओं जो अति पिछड़ा वर्ग और दलित शोषित वर्ग के थे उन छात्रों छात्राओं के साथ दूसरे गांव के दबंग समाज के युवा उनके साथ छेड़छाड़ व मारपीट करते थे जिसकी वजह से अति पिछड़ा वर्ग दलित शोषित वर्ग के छात्र-छात्राओं ने स्कूल तक छोड़ दिए थे जो मोहन प्रजापति से बर्दास्त नही होता था उसी को लेकर उन्होंने पढ़ाई छोड़ चुके दोबारा से शहर में पढ़ाई शुरू कर दी जिसमें कई बार उनका उत्पादी लड़कों के साथ झगड़ा हुआ जिसमें गलत युवाओं का उन्होंने घरों से निकलना तक बंद कर दिया था वह निकले तो सुधर कर निकले वह बताते हैं कि यह सब देखकर उनकी मां रुकमणी देवी उनको गरीबी की दुहाई देकर बहुत डांट थी लेकिन उनका मकसद ही दूसरों के लिए संघर्ष करना था उन्हें लोगों को न्याय दिलाने के लिए गांव से शहर बस से आना पड़ता था अधिकारियों से मिलने के लिए जिसकी वजह से उनके परिवार को उनकी चिंता सताने लगी वही 2010 में मुजफ्फरनगर में आकर रहने लगे, शहर में आने के बाद भी उनका संघर्ष बढ़ता रहा और वह बसपा में शामिल हो गए लेकिन बसपा में उनकी आवाज दबने लगी थी जिससे वह समाज के लोगों के लिए खुलकर संघर्ष नहीं कर पा रहे थे और घुटन सी महसूस होने लगी थी बसपा में रहते जब वे कोई संघर्ष या आंदोलन लोगों के लिए करते थे तो बसपा उन्हें अनुशासन हीन बताने लगी थी जिससे उनको घुटन सी महसूस होने लगी और 2014 में उन्होंने बसपा छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली थी भाजपा में जाने के बाद उनका संघर्ष अति पिछड़ा वर्ग समाज के लिए जारी रहा कुछ दिनों के बाद भी भाजपा से भी निष्क्रिय होते चले गए और 2015 में उन्होंने अपना संगठन भारतीय अति पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा का गठन किया जिससे वह बड़ी मजबूती से चला रहे हैं जिसमें अति पिछड़ा वर्ग जाति के पाल प्रजापति कश्यप सैनी विश्वकर्मा सेन बारी बंजारा जोगी आदि जाति को भी बराबर का प्रतिनिधित्व मिला है और सभी को साथ लेकर चल रहे हैं इस मोर्चे के बैनर तले बड़े-बड़े आंदोलन व धरना प्रदर्शन चला चुके हैं ओर हजारों लोगों को न्याय दिला चुके है अपनी दबंग छवि के चलते अपने धरना प्रदर्शन आंदोलन के कारण आज मोहन प्रजापति अतिपिछड़ों की आवाज बन गये है और इस संदेश को दबंग लोगों तक पहुंचाने में सफल रहे जो दबंग लोग गांव देहातों में अति पिछड़ा वर्ग मजदूर दलित शोषित ओं का शोषण करने का काम करते हैं उन्होंने अपनी दबंग छवि से बता दिया है अगर दबे कुचले शोषित पिछड़ों का शोषण हुआ तो मोर्चा बड़ी मजबूती से मुकाबला करेगा और उनके सामने डटा रहेगा लेकिन 2013 में पिता जयपाल सिंह की मौत के सदमे से उबरे नहीं थे कि 2014 में माता रुक्मणी देवी का हार्ट अटैक के कारण हुई मौत से भी पूरी तरह टूट चुके थे और अकेले पड़ गए थे लेकिन इस दर्द में दुख से उबरने में सर्व समाज ने उन्हें भरपूर साथ व प्यार दिया जिस लगाव ओर साथ से वे दुख से उबर कर और अधिक मजबूती ऊर्जा के साथ लोगों के बीच पहुंचे और लोगों की सेवा व संघर्ष में लग गए बताते चले कि उन्होंने ना सिर्फ अति पिछड़े वर्ग की लड़ाई लड़ी बल्कि ऐसे बहुत लोग हैं जो उच्च वर्ग से आते हैं और उन्हें भी न्याय दिलाने का काम किया उनका हमेशा कहना रहा है कि अगर पीड़ित किसी भी वर्ग का है उस को न्याय मिलना चाहिए और उन्होंने उन्हें न्याय दिलाने का काम भी किया लोगों के प्रति उनका संघर्ष में प्यार की वजह से आज वह किसी भी पहचान के मोहताज नहीं है आज वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के पिछड़ों में एक बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आए हैं उनकी इस दबंग छवि के चलते मुसीबत भी उन्हें उनकी मंजिल से भटका नही सकी ओर उदाहरण सामने है कि जब कहि भी अतिपिछड़ों पर अत्याचार या शोषण होता है तो वहाँ भारतीय अति पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहन प्रजापति सबसे पहले खड़े मिलते है। वह अपनी मजबूती की वजह अति पिछड़ा वर्ग समाज से मिल रहे प्यार के साथ अपने विरोधियों को भी बताते हैं कि आज विरोधियों की वजह से भी उनको ताकत मिलती है क्योंकि उनके विरोधी टांग खिंचाई में लगते हैं तो वह भटकने की बजाय अपने काम में और अधिक मजबूती से लगते हैं।
भारतीय अति पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहन प्रजापति का जीवन रहा संघर्षकारी, उनके संघर्षशील जीवन पर एक नज़र